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”मेरा वज़ूद ऐसा है ”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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rg

मेरे दुश्मन को है खलता , मेरा वज़ूद ऐसा है ,
गिराने से नहीं गिरता , मेरा वज़ूद ऐसा है !

दिलों में बस गया है जो ,फकत इक नाम ऐसा है ,
मिटाने से नहीं मिटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !

मैं आगे हूँ या पीछे हूँ मगर फोकस में मैं ही हूँ ,
हटाने से नहीं हटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !

मेरे दिल में उमड़ता मुल्क से जो इश्क -ए-समंदर ,
घटाने से नहीं घटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !

अगर तूफ़ान हो तुम , मैं भी हूं जलता हुआ दीपक ,
बुझाने से नहीं बुझता ,मेरा वज़ूद ऐसा है !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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