! अब लिखो बिना डरे !
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डूब कर मरने की भी
बद्दुआ है बेअसर,
आंख का पानी भी जिनका
सूख गया इस कदर,
न्याय के लिए बढ़ी
बेटियों को क्या मिला?
ज्यादती की इंतहां
हैं पुलिस की लाठियां।
हक नहीं गर बेटियों को
बोलने का देश में,
तानाशाही चल रही
जनतंत्र तेरे भेष में,
न रुकेगा बेटियों
जान लो ये सिलसिला,
ज्यादती की इंतहां
हैं पुलिस की लाठियां।
बेशर्म है वो लाठियां
बेटियों पर जो पड़ी,
बेशर्म हैं वो हाथ जिनमें
लाठियां थी वे थमी,
अब ढहाना है हमें
बेशर्म ताकत का किला,
ज्यादती की इंतहां
हैं पुलिस की लाठियां।
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