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‘शत्रु को माफ़ किया ‘-कविता

! अब लिखो बिना डरे !
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मेरे आगे पीछे तुमने
निंदा की है काफी,
तुम्हीं सही हो हर मुद्दे पर
फिर क्यों मांगों माफ़ी ?
अहं मेरा भी करे प्रताड़ित
मेरे अंतर्मन को ,
हाँ ! प्रतिशोध जलाता रहता
सुन्दर जीवन -उपवन को ,
इसी तथ्य से अवगत होकर
खुद के संग इन्साफ किया !
मैंने शत्रु को माफ़ किया !

कटु वचन बोला वो क्षण -भर ,
ज़हर उगलता हो ज्यूँ विषधर ,
मैंने भी उस सारे विष को ;
भर डाला निज उर के अंदर ,
तड़प उठा जब भीतर-भीतर
निस्सहाय होकर रोया ,
उस क्षण रोष हुआ खुद पर ही
क्यूँ मैंने धीरज खोया ,
तब मन के सब जाले-जूले
कूड़ा-करकट साफ़ किया !
मैंने शत्रु को माफ़ किया !

शांत ह्रदय में सद्गुण पलते ,
हैं सृजन के बीज पनपते ,
क्रोध-रोष तो हाथ हमारे
हमको भस्म किया हैं करते ,
रहो अभय ! निश्चिन्त रहो !
कोई बाल न बांका कर सकता ,
नहीं काल से पहले कोई
नष्ट हमें है कर सकता ,
मन को काबू कर लेने का
पथ ये खूब तलाश किया !
मैंने शत्रु को माफ़ किया !

डॉ.शिखा कौशिक ‘नूतन’

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