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“ये तो मोहब्बत नहीं “….

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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तेरी ज़िद है तू ही सही ;
मेरी अहमियत कुछ नहीं ,
बहुत बातें तुमने कही ;
मेरी रह गयी अनकही ,
ये तो मोहब्बत नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !!
…………………………………
हुए हो जो मुझ पे फ़िदा ;
भायी है मेरी अदा ,
रही हुस्न पर ही नज़र ;
दिल की सुनी ना सदा ,
तुम्हारी नज़र घूरती ;
मेरे ज़िस्म पर आ टिकी !
ये तो मोहब्बत नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !!
…………………………….
रूहानी हो ये सिलसिला ;
ना इसमें हवस को मिला ,
है नाज़ुक सा रिश्ता बड़ा ;
ज़ज़्बात से ही निभा ,
कहीं तेरे तेज़ाबी तेवर ;
जला दें n खिलती कली !
ये तो मोहब्बत नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !!
…………………………..
नहीं देना तू दर्द उसको ;
माना है महबूब जिसको ,
अगर है हवस ही मिटानी ;
तो समझा यही बस खुद ही को ,
मोहब्बत तो है पाक गंगा ;
नाली का पानी नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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