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शर्मिंदा-लघुकथा

! अब लिखो बिना डरे !
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शर्मिंदा-लघुकथा…

”अरे चेयरमैन साब ! आपको क्या जरूरत थी आने की ……चपरासी को भेज देते …मैं आपकी पसंद का सामान घर ही पहुंचवा देता .” जनरल स्टोर पर पधारे विशिष्ठ अतिथि को देख स्टोर मालिक सोनू गदगद हो उठा . चेयरमैन साब मुस्कुराते हुए बोले ‘ अरे नहीं नहीं ….आज सोचा कस्बे में घूम आऊं .ये सामने रखा बाथ सोप दिखाना .” नहाने के साबुन की ओर इशारा कर उन्होंने कहा .सोनू ने तुरंत उन्हें वैसे ही चार साबुन दिखा दिए और बोला -” बेस्ट सोप है …ले लीजिये .” उन्हें पसंद आये और उन्होंने पूछा -” कितने के हुए ?” सोनू सकुचाता हुआ बोलै -” क्यों शर्मिंदा करते हैं ? आपसे पैसे लूंगा क्या ! ” चेयरमैन साब के बहुत बार कहने पर भी उसने साबुनों के रूपये नहीं लिए और ठंडा – गरम मंगाने की जिद करने लगा पर चेयरमैन साब के पास अधिक समय नहीं था और वे विदा हो गये. उनके जाने के बाद एक गरीब आदमी सोनू के स्टोर पर आया और वैसे ही नहाने के साबुन की ओर इशारा करता हुआ बोला – ‘ये कितने का दिया भाई?’ सोनू उपेक्षित से भाव में बोला – ‘सत्तर रूपये का है एक.’ वो गरीब आदमी जेब से रूपये निकालकर सकुचाते हुये बोला – ‘ये पैंसठ रूपये हैं… पांच बाद में लगा लेना.’ उसकी विनती सुनकर सोनू उसे समझाते हुये बोला – ‘ भाई …कोई सस्ता सा साबुन ले ले ..उधार मांगकर मुझे शर्मिंदा मत कर .” उसकी इस बात पर गरीब आदमी उसके स्टोर से उतर कर चल दिया और वास्तव में मानवता शर्मिंदा हो उठी .

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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