! अब लिखो बिना डरे !
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हो व्यथित नारी ने नर से
दो टूक ये वचन कहे,
मैंने तुमको दिल दिया
तुमने मुझे आंसू दिये!
जिंदगी के तुम मेरे
बन के मालिक तन गये,
छीनकर हक मेरे सारे
खुद खुदा तुम बन गये,
टूट कर बिखर गयी
जुल़म इतने क्यूं किये!
मैंने तुमको दिल दिया
तुमने मुझे आंसू दिये!
रोज़ दे देकर सुबूत
पाकीज़गी के थक गयी,
तेरे वहशीपन के कारण
देह बनकर रह गयी,
है मुझे मालूम कैसे?
खून के आँसू पिये!
मैंने तुमको दिल दिया
तुमने मुझे आंसू दिये!
जिस किसी ने की बगावत
हो गया उसका कत्ल,
और है इल्जाम उसपर
बदचलन थी बेअक्ल,
हां जुबान काटकर
सब लफ़ज मेरे ले लिये!
मैंने तुमको दिल दिया
तुमने मुझे आंसू दिये!!
शिखा कौशिक नूतन
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