! अब लिखो बिना डरे !
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मिले
न्याय
हर
निर्भया को,
फांसी चढे़
हर
अन्यायी कामी!
घाव भर जाये
हर क्षत – विक्षत
स्त्री योनि के
और
न रहे अधूरी
ये आस
“मैं जीना चाहती हूँ ”
जी उठे पुन :
प्रफुल्ल ह्रदय से
सम्मान के साथ
हर निर्भया!
शिखा कौशिक नूतन
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