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‘फेसबुकिया लड़कियां’-CONTEST

! अब लिखो बिना डरे !
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ये एक विडंबना ही है कि आज जहाँ अंतर्जाल को महिलाएं अपने सशक्तिकरण हेतु एक हथियार बनाने की ओर अग्रसर हैं वही कुछ नीच प्रवृति के लोग इसका दुरूपयोग कर ”महिला ” की गरिमा गिराने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं
बात सन 2010 की रही होगी .मैंने फेसबुक पर अकाउंट बनाया ही था . शुरू में जिसकी भी फ्रेंड रिक्वस्ट आती मैं स्वीकार कर लेती . एक महोदय ने चैट की शरुआत की .मुझे किसी पर्व की शुभकामनायें दी .मैंने प्रतिउत्तर में ‘THANKS AND SAME TO YOU BROTHER ‘ लिख दिया .इस पर उन महोदय ने पलट कर जो लिखा वो भारतीय पुरुष की कुंठित सोच को उजाकर करता है .जो अपनी बहन को तो किसी गैर मर्द से बात करने तक की इजाज़त तक नहीं देते और गैर व् अजनबी लड़की से केवल दोस्ती का रिश्ता कर अपनी गन्दी सोच का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं .उसने लिखा -”HOW VILLIAGER ARE YOU ‘ ” क्या किसी से बंधुत्व का नाता रखना हमें गंवार बनाता है ? यदि ऐसी सोच है तो हाँ मैं तो पक्की गंवार हूँ ! मैंने ये लिख कर उन महोदय को फ्रेंड लिस्ट से हटा दिया था .
फेसबुक पर काम करने वाले पुरुष वर्ग से मैं यही कहना चाहूंगी कि सोशल साईट पर अकाउंट बनाने वाली लड़कियां खुली तिजोरी नहीं हैं .वे आधुनिक तकनीक का सदुपयोग करने के लिए यहाँ है न कि आपके मनोरंजन के लिए .
शिखा कौशिक ‘नूतन’

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