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हम भी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि भारतीय समाज में प्राचीन काल में स्त्री को बहुत ऊँचा रुतबा प्राप्त था पर धीरे धीरे उसकी दशा गिरती चली गयी ,यद्यपि याज्ञवल्कय -मैत्रेयी प्रसंग ,सीता माता का श्री राम द्वारा त्याग ऐसे प्रसंग हैं जो इसकी पुष्टि नहीं करते .हमारे एक विद्वान हितैषी ने हमें ये भी सूचित किया था कि ”स्त्रियों को ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहिए ”.जब हमने वैदिक कालीन महान विदुषियों का उदाहरण दिया तो उनका कहना था ‘ वे महान महिलाएं थी सब वैसी नहीं होती क्योंकि स्त्री केवल स्नान के थोड़ी देर बाद तक ही पवित्र होती हैं .” हमारे यहाँ बड़ों ने हमें ये भी बताया था कि प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले रामलीला मेले में जिस मंच पर रामलीला आयोजित की जाती है उस पर महिलाएं नहीं जा सकती हैं क्योंकि महिलाएं अपवित्र होती हैं .अब इस प्रथा का पालन कितना किया गया ये तो बताना संभव नहीं क्योंकि हमारे कस्बे में कुछ समय पहले थानाध्यक्ष तक एक महिला रह गयी हैं और उनका सम्मान इस मंच पर बुलाकर किया गया अथवा नहीं /क्योंकि अक्सर थानाध्यक्ष इस मंच पर बुलाकर सम्मानित किये जाते हैं .बहरराल मुझे और मेरी बहन शालिनी कौशिक जी को ऐसी ही एक अप्रिय स्थिति से गुजरना पड़ा जब हम एक आमंत्रण पर श्रीरामचरितमानस के अखंड पाठ हेतु जानकारी के एक घर पर गए .हमे श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों के पाठ के लिए यह कहकर मना कर दिया गया क्योकि उनके यहाँ ‘व्यास गद्दी’ पर महिलाओं को बैठने की आज्ञा नहीं है .हमे बहुत विचित्र लगा क्योंकि हमारे घर में ऐसी कोई परंपरा नहीं है .मुझे लगता है कोई भी महिला अपवित्र अवस्था में पूजा-पाठ के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करती और जो महिलाओं को अपवित्र कहकर उनका अपमान कर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगाते हैं ;वास्तव में तो उनकी सोच अपवित्र है .
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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