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और आदमी फुटपाथ पर .

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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धिक्कार इस जनतंत्र पर !

है विषमता ही विषमता
जाती जिधर भी है नज़र ,
कारे खड़ी गैरेज में हैं
और आदमी फुटपाथ पर .

……………………………..

एक तरफ तो सड़ रहे
अन्न के भंडार हैं ,
दूसरी तरफ रहा
भूख से इंसान मर
है विषमता ही विषमता

जाती जिधर भी है नज़र !

………………………..

निर्धन कुमारी ढकती तन
चीथड़ों को जोड़कर
सम्पन्न बाला उघाडती
कभी परदे पर कभी रैंप पर
है विषमता ही विषमता

जाती जिधर भी है नज़र !

………………………….

मंदिरों में चढ़ रहे
दूध रुपये मेवे फल ,
भूख से विकल मानव
भीख मांगे सडको पर
है विषमता ही विषमता

जाती जिधर भी है नज़र !

……………………………..

कोठियों में रह रहे
जनता के सेवक ठाठ से ,
जनता के सिर पर छत नहीं
धिक्कार इस जनतंत्र पर !

शिखा कौशिक ”नूतन”

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