! अब लिखो बिना डरे !
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दर्द दिल में है तेरे हम जानते हैं !
ज़ख्म गहरे हैं तेरे हम जानते हैं !
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ग़मों की आग में तपकर मासूम सा ये दिल ,
धधकता सीने में तेरे हम जानते हैं !
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छलक आते हैं आसूँ आँखों में बेशरम ,
नहीं बस में हैं तेरे हम जानते हैं !
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तज़ुर्बा कह रहा हमसे वफ़ा का है सिला धोखा ,
नहीं कुछ हाथ में तेरे हम जानते हैं !
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क्यों सदमा सा लगा तुझको हकीकत जानकर ‘नूतन’
नहीं कोई साथ है तेरे हम जानते हैं !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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