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”हाँ ! कलम में है वो ताकत !”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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है नहीं शमशीर कोई सिर कलम का काट दे !
हाँ ! कलम में है वो ताकत झूठ का सिर काट दे !
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ज़ालिमों का पर्दाफाश कर रही है जो कलम ,
हौसलों के हाथ उसके कौन कैसे काट दे !
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सच की पहरेदार बन परवाज़ ऊँची भर रही ,
है अगर हिम्मत तो कातिल इसके पंख काट दे !
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झुक नहीं सकती कभी ज़ुल्मों-सितम के सामने ,
आग की लपटों को नामुमकिन है कोई काट दे !
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बेजुबान, अंधी , बहरी मत रहो ‘नूतन’ कलम ,
दुश्मनों के जिस्म आज टुकड़े-टुकड़े काट दे !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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