! अब लिखो बिना डरे !
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कोई बला जब हम पर आई ,
माँ को खुद पर लेते देखा !
हुआ हादसा साथ हमारे ,
माँ को बहुत तड़पते देखा !
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हो तकलीफ हमें न कोई ,
साँझ-सवेरे खटते देखा !
कभी नहीं संकट के आगे ,
हमनें माँ को झुकते देखा !
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ऊपर-नीचे अंदर-बाहर ,
माँ को फिरकी बनते देखा !
नहीं आखिरी दिन तक हमने ,
माँ को थककर सोते देखा !
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जब जब ठोकर खाई हमने ,
माँ को हमें उठाते देखा !
माँ से बढ़कर इस सृष्टि में ,
हमनें नहीं किसी को देखा !
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साँस थामकर हमने माँ को ,
दूर बहुत है जाते देखा !
पूजे जाते भगवानों में ,
माँ का रूप समाते देखा !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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