! अब लिखो बिना डरे !
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”हमारी हर खता को मुस्कुराकर माफ़ कर देती ;
खुदा नहीं मगर ”माँ’ खुदा से कम नहीं होती !
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”हमारी आँख में आंसू कभी आने नहीं देती ;
कि माँ की गोद से बढकर कोई जन्नत नहीं होती !
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”मेरी आँखों में वो नींद सोने पे सुहागा है ;
नरम हथेली से जब माँ मेरी थपकी है देती !
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”माँ से बढकर हमदर्द दुनिया में नहीं होता ;
हमारे दर्द पर हमसे भी ज्यादा माँ ही तो रोती !
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उसी की बूँद बनकर ”माँ’ दुनिया में रहती !
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ये उनसे पूछकर देखो कि जिनकी माँ नहीं होती .”
शिखा कौशिक
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