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‘मार झपट्टा मौत अभी खुली चुनौती आज है !’

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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बेमौसम हुई बरसात ने किसानों की फसलों के साथ -साथ उनके अरमानों को तबाह कर डाला ;जिसके कारण रोज़ हमारे अन्न-दाता मौत को गले लगा रहें हैं और अचानक आये भूकम्प ने नेपाल सहित भारत के कई राज्यों में हज़ारों मासूमों की ज़िंदगी लील ली . तो क्या हम मौत के ऐसे तांडव के सामने घुटने टेक दें ? नहीं हमे मौत को ही खुली चुनौती देनी होगी कि -आ हम पर झपट्टा मार ..हम भी देखते हैं कब जाकर तेरी प्यास शांत होगी ज़ालिम !

मार झपट्टा मौत अभी खुली चुनौती आज है !
कई हादसे झेल चुका दिल मेरा फौलाद है !
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एक-एक कर के कितने अपने हमसे तूने छीन लिए ,
जो जी चाहे कर ले ज़ालिम तू पूरी जल्लाद है !
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बेबस होकर हाथ जोड़कर नहीं मिन्नतें करते हम ,
अपनी मनमर्ज़ी करने को तू बिलकुल आज़ाद है !
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हरी-भरी बगिया को तूने झुलसा डाला बेमौसम ,
और उजाड़ेगी क्या गुलशन कौन यहाँ आबाद है !
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खौफ नहीं तेरे आने का तुझसे नज़र मिला लेंगें ,
‘नूतन’ को झुककर न करनी अब कोई फरियाद है !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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