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”शायद यही प्यार है !”-लघु कथा

! अब लिखो बिना डरे !
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रमन आज अपने जीवन के साठ वें दशक में प्रवेश कर रहा था . उसकी जीवन संगिनी विभा को स्वर्गवासी हुए पांच वर्ष हो चुके थे .रमन आज तक नहीं समझ पाया कि एक नारी की प्राथमिकताएं जीवन के हर नए मोड़ पर कैसे बदलती जाती हैं . जब उसका और विभा का प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ था तब विभा से मिलने जब भी वो जाता विभा उससे पूछती -” आज मेरे लिए क्या खास लाये हो ?” और रमन मुस्कुराकर एक खूबसूरत सा फूल उसके जूड़े में सजा देता .विवाह के पश्चात विभा ने कभी नहीं पूछा कि रमन उसके लिए क्या लाया है बल्कि घर से चलने से पहले और घर पहुँचने पर बस उसके लबों पर होता -” पिता जी की दवाई ले आना , माता जी का चश्मा टूट गया है ..ठीक करा लाना , और भी बहुत कुछ ..मानों रमन के माता-पिता उससे बढ़कर अब विभा के हो चुके थे . बच्चे हुए तो बस उनकी फरमाइश पूरी करवाना ही विभा का काम रह गया -”बिट्टू को साईकिल दिलवा दीजिये ….मिनी को उसकी पसंद की गुड़िया दिलवा लाइए …” रमन ने मन में सोचा -” मैं चकित रह जाता आखिर एक प्रेमिका से पत्नी बनते ही कैसे विभा बदल गयी .अपने लिए कुछ नहीं और परिवार की छोटी-से छोटी जरूरत का ध्यान रखना . शायद इसे ही प्यार कहते हैं जिसमे अपना सब कुछ भुलाकर प्रियजन से जुड़े हर किसी को प्राथमिकता दी जाती है .” रमन ने लम्बी साँस ली और विभा की यादों में खो गया क्योंकि यही उसके जीवन के साठ वे दशक में प्रवेश का सबसे प्यारा उपहार था .

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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