! अब लिखो बिना डरे !
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जो कलम लिख देती माँ ,
हो जाती वो तो पाक है ,
क्या लिखूं माँ के लिए ?
”माँ’ पूरी कायनात है !
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मैं हूँ क़तरा ; माँ समंदर ,
मैं कली वो है चमन ,
माँ के चरणों में है जन्नत ,
माँ ज़मी माँ ही गगन !
कामयाबी हर मेरी
”माँ” का आशीर्वाद है !
क्या लिखूं माँ के लिए ?
”माँ’ पूरी कायनात है !
…………………………..
हम से पहले माँ ये जाने ,
क्या हमें कब चाहिए ?
माँ का दिल ममता भरा
और कुछ न पाइए ,
एक आह हमने भरी
माँ जागती दिन-रात है !
क्या लिखूं माँ के लिए ?
”माँ’ पूरी कायनात है !
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हम हँसे तो माँ हंसी ,
रोने पर पुचकारती ,
डांट देती भूल पर ;
पल में फिर दुलारती !
माँ दुआ बनकर सदा
रहती हमारे साथ है !
क्या लिखूं माँ के लिए ?
”माँ’ पूरी कायनात है !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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