! अब लिखो बिना डरे !
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भोला सा नाज़ुक सा दिल ये कितने सदमे झेलेगा ,
ग़म से भरकर फट जायेगा कितने सदमे झेलेगा !
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फूल से दिल पर दर्द के पत्थर कैसे वो बच पायेगा ?
टुकड़े टुकड़े हो जायेगा जितने सदमे झेलेगा !
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जब जब दिल ये आह भरेगा पलकें तब तब भीगेंगी ,
कब तक दिल बर्दाश्त करेगा कब तक खुद से खेलेगा !
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किस्मत ने पैने खंजर से दिल पर सीधा वार किया ,
ज़ख्म है गहरा रूह तड़पती मुंह कैसे इससे फिरेगा !
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दिल तो दिल है ‘नूतन’ तुमको इतना भी मालूम नहीं ,
अपनों की खातिर हंसकर ये सारे सदमे झेलेगा !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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