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अन्नदाता की मौत !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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इस बार
आसमान से
जल नहीं बरसा
बरसी है आग !
जिसने जला डाले
किसानों के
सारे ख्वाब !
कोई सदमे से मर गया ,
किसी ने खाया ज़हर ,
कोई फांसी से लटक गया
और कोई गया जल ,
बरसात थी या थी कहर !
ऊपर वाले कैसा
तेरा
इंसाफ ?
खून-पसीने से खड़ी
फसल का
ये कैसा
सत्यानाश ?
हर अन्नदाता की
मौत पर ,
ह्रदय में उठता
है ये प्रश्न ?
किस करुणानिधान ने
किया ये कर्म
इतना निर्मम बन ?

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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