! अब लिखो बिना डरे !
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हमारी जीत को जो हार बना मात देते हैं !
वही हंसकर गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं !
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बड़े हमदर्द बनकर दे रहे गम में जो तसल्ली ,
वही तो साज़िशें रच क़त्ल को अंजाम देते हैं !
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मेरी बदनामियों पर हो खफा दुनिया से भिड़ जाते ,
मुझे बदनाम कर ये इस हुनर से काम लेते हैं !
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नहीं हममें अक़्ल जो जान लें वे दोस्त या दुश्मन ,
मगर हम बेअक़्ल शातिर सभी पहचान लेते हैं !
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बड़े मासूम हैं ; नादान हैं ; क्या कहें ‘नूतन ‘
जो हमको क़त्ल कर कातिल का हमें नाम देते हैं !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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