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राजनीति में आकर किरण बेदी जी ने अपनी लोकप्रियता दांव पर लगा दी है . यदि वे अपने बल पर बीजेपी को दिल्ली में बहुमत दिला पाती हैं तब उनकी जय-जयकार पक्की है किन्तु यदि वे इसमें असफल होती हैं तब उनका राजनैतिक कैरियर यही समाप्त हो जायेगा . अपनी कार्यशैली अथवा योग्यता के आधार पर समाज में लोकप्रियता हासिल करने वाले व्यक्ति जब भी राजनीति में आये उन्हें एक सीमा के बाद इससे किनारा करना पड़ा .किरण बेदी जी एक ईमानदार व् काबिल अधिकारी रही हैं .वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बनें तो दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की गरिमा को बढ़ाएंगी किन्तु राजनीति में ऐसे ईमानदार व्यक्ति को किस तरह से प्रताड़ित किया जाता है ऐसे कई उदाहरणों से भारतीय-राजनीति का इतिहास भरा पड़ा है . राजनीति के शातिर खिलाडी इन लोकप्रिय चेहरों को पार्टी की जीत के लिए इस्तेमाल करते हैं और जब ये उनकी पार्टी को जीत दिला देते हैं तब पार्टी-अनुशासन के नाम पर इनकी कार्य-शैली को निशाना बनाया जाता है .किरण जी ने अपने पहले राजनैतिक कदम में ही बहुत बड़ा जोखिम उठा लिया है .यदि खुलकर कहें तो उनसे ये उम्मीद नहीं थी .
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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