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”सुना कुत्तों की दावत है !”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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कहर बरसा  मेरे घर तो वो बोले सब सलामत है ,

गई छींटें जो उनकें घर तो बोले अब क़यामत है !

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मेरे बच्चों ने पी पानी गुज़ारी रात सारी है ,

बराबर के बड़े घर में सुना कुत्तों की दावत है !

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बिना गाली के जिनकी गुफ्तगूं होती नहीं पूरी ,

हमें इलज़ाम देकर कह रहे हम बे-लियाकत हैं !

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क़त्ल करते हैं और लाशों पे जो करते सियासत हैं ,

नहीं मालूम उनको एक अल्लाह की अदालत है !

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हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी ,

कलम के कातिलों से इस तरह करनी बगावत है !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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