! अब लिखो बिना डरे !
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कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे ,
बहते हुए भावों की ;
एक सरिता सी लगे !
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चंचल किशोरी सम जो ;
खिलखिलाए खुलकर ,
बांध ले ह्रदय को ;
नयनों के तीर चलकर ,
ऐसी रचूँ कि कुमकुम सी
मांग में सजे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !
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हो मर्म भरी ऐसी ;
जो चीर दे उरों को ,
एक खलबली मचा दे ;
पिघला दे पत्थरों को ,
निर्मल ह्रदय जो कर दे ;
वो सुर लिए सधे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !
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तितली का मनचलापन ;
सुरभि लिए कुसुम की ,
आशाओं के गगन में ;
वो चहके पाखियों सी ,
साहित्य के सदन में ;
शहनाई सी बजे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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