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”कैसी घर वापसी ”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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गरीब केवल गरीब होता है ,
वो न हिन्दू होता है
वो न मुसलमान होता है !
……………………………………
उसको सुबह होते ही
चिंता सताती है
बच्चों के पेट की
आग बुझाने की

…………………………………….
वो दिन भर मरता है
कटता है ,
धूप में जलता है ,
बारिश में गलता है ,
ठण्ड में ठिठुरता है
खींचता है रिक्शा ,
ठेलता है रेहड़े
,कमर पर उठाता है
सीमेंट के भरे
भारी कट्टे!
…………………..
उसमे कहाँ दम वो
चर्चाओं में हो शामिल
धर्म पर करे
विचार-विमर्श ,
……………………………..
उसका कोई घर भी कहाँ
जो कर सके
”घर वापसी ”

शिखा कौशिक ‘नूतन

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