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”काश न जाते बच्चे स्कूल !”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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काश उस मनहूस दिन
सूरज निकलने से
कर देता मना !
…………………..
काश अब्बा न जगाते
स्कूल जाने के लिए
रोज़ की तरह !
……………………..
काश स्कूल के लिए
तैयार होते समय
टूट जाता जूते का फीता
और बन जाता
न जाने का एक बहाना !
……………………………..
काश अम्मी ही कह देती
क्या रोज़ रोज़ जरूरी है
स्कूल जाना !
…………………………….
काश स्कूल में घुसने से पहले
आतंकियों के
कट जाते हाथ !
………………………….
काश उस दिन
ख़ुदा देता
मासूमों का साथ !
……………………….
काश न जाते
बच्चे स्कूल
और
गोलियों की जगह
बंदूकों से निकलते फूल !
………………………….
कुछ न हो सका
न हो पायी
कोई दुआ क़ुबूल
…………………………
दरिंदगी की भेंट
चढ़ गए
नन्हे मुन्ने रसूल !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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