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मानव की जय -जयकार !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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होगी  सुबह ,

दिनकर उदित होगा पुनः ,

निज रथ  पे हो सवार !

……………….

हर लेगा तम ,

होगा सुगम ,

जीवन का सब व्यापार !

…………………………

छोडो न  आशा  ,

हो व्यथित ,

किंचित करो विचार !

……………………..

मानव  हो तुम ,

निज बुद्धि -बल की,

तेज करो धार  !

……………………

गिर कर उठो ,

उठकर  बढ़ो  ,

हो तीव्र नित रफ़्तार !

……………………………………………….

होकर हताश ,

यूँ निराश ,

मान लो मत हार !

…………………………..

तेरी धरा ,

तेरा गगन ,

सृष्टि का कर श्रृंगार !

…………….

दानवी बाधा   कुचल ,

ब्रह्माण्ड में हो अब सकल ,

मानव की जय -जयकार  !

शिखा कौशिक ‘नूतन ‘

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