! अब लिखो बिना डरे !
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नहीं हादसे झेले जिसने ,
आहें नहीं भरी हैं जिसने ,
अगर थाम ले कलम हाथ में ,
कलम क्या उसकी खाक लिखेगी !!
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पलकें न भीगीं हो जिसकी ,
आंसू का न स्वाद चखा हो ,
अगर लगे दर्द-ए-दिल गानें ,
दिल पर कैसे धाक जमेंगी !!
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नहीं निवाले को जो तरसा ,
नहीं लगी जिस पेट में आग ,
बासी रोटी खा लेने को ,
आंतें उसकी क्यों उबलेंगी !!
शिखा कौशिक ‘नूतन ‘
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