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”सर्वकालिक विद्वता”

! अब लिखो बिना डरे !
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”अंत ”

हाँ इस जीवन का अंत

निश्चित ,निःसंदेह होना ही है !

फिर भी

सुखों की लालसा में दूसरों को दुःख देना ,

अपने और अपने ही हित को देखना ,

मैं तो अमर हूँ ये सोचना ,

मृत्यु को धोखा देता ही रहूंगा !

दुसरे के विपदामयी जीवन पर मुस्कुराना !

मूर्खता है ,

कभी

गरीब को दुत्कारना ,

लोभवश अमीर को पुचकारना  ,

उनके साथ बैठकर गर्व का अनुभव करना ,

माया का जाल है !

तो

अब ये सोचो कैसे प्रभु के प्रिय बने ?

कैसे अपने ह्रदय में सिर्फ उनको धरें ?

ह्रदय में उनकी भक्ति बसाएं ,

उनकी भांति पूरे विश्व के प्रति ह्रदय में सद्भाव लाएं ?

ये ही विद्वता है

हाँ ! सर्वकालिक विद्वता !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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