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ह्रदय की ज्योति

! अब लिखो बिना डरे !
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कायरता की बात  मत  मुझसे किया करो ,

जब भी तुम भयभीत हो मुझसे मिला करो !

मैं तुम्हारे अंत:करण से सब भय मिटा दूंगा ,

मैं तुम्हारे ह्रदय में साहस-दीप जगा दूंगा !

मैं कौन हूँ ? मैं क्या हूँ ?मुझसे मत पूछो ,

मैं हूँ वही जिसके तुम प्रतिपल साथ रहते हो ,

कभी खुद ,कभी ईश्वर ,कभी रब -ईसा कहते हो !

सबके ह्रदय के भीतर  जो रोशनी हैं रहती  ,

पाप-कर्म के कारण मंद-मंद हैं रहती !

मैं वही हूँ ,तुम्हारी ही एक दिव्य-छवि हूँ !

और सुनो तुम्हारे पाप ही भय के कारण हैं ,

तुम छिपा सकते हो दुनिया से

पर मैं तो तुम्हारे ह्रदय की ज्योति हूँ

सब स्वयं  ही जान लेती हूँ !

चलो उठकर अपने पापों से तौबा कर लो ,

फिर देखो तनिक भी कायरता और भय न होगा

तुम प्रज्ज्वलित  दीपक के समान होगे

और सर्वत्र  तुम्हारे लिए स्वर्ग की तरह सुन्दर होगा !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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