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”नैतिक” शब्द से तात्पर्य है -‘नीति सम्बन्धी ”. अब ‘नीति ‘ क्या है ? ‘नीति ‘ से तात्पर्य है -व्यवहार का ढंग बर्ताव का तरीका ,लोक-व्यवहार हेतु नियत किया गया आचार ,सदाचार -व्यवहार आदि के नियम और रीतियाँ ,शासन की रक्षा एवं व्यवस्था हेतु स्थिर किये गए तत्व व् सिद्धांत आदि .’१किन्तु प्रश्न उठता है कि ये नियम-रीतियाँ किसने निर्धारित की हैं ? ‘नैतिक’ होने का प्रमाण-पत्र कौन प्रदान करेगा ? ”नैतिक” होने के मायने क्या हैं ? मेरा मानना है कि कोई भी नीति-शास्त्र ये निर्धारित नहीं कर सकता है कि हम नैतिक हैं या नहीं .नैतिक होने के मायने व्यक्ति व् परिस्थिति विशेष निर्धारित करती हैं .श्री राम ने बालि पर छिपकर वाण चलाकर उसका वध किया तब बालि ने रोष में भरकर श्री राम पर अनैतिक कार्य का आरोप लगते हुए कहा -”त्वयादृश्येन …पापवशं गत:”२”अर्थात ”जैसे किसी सोये पुरुष को सांप डस ले और वह मर जाये उसी प्रकार रणभूमि में मुझ दुर्जेय वीर को आपने छिपे रहकर मारा तथा ऐसा करके आप पाप के भागी हुए हैं .” इस पर प्रतिक्रिया देते हुए श्री राम नैतिकता को परिभाषित करते हुए से कहते हैं -”नहि …हरियूथप ” ३””वानर राज ! जो लोकाचार से भ्रष्ट होकर लोकविरुद्ध आचरण करता है उसे रोकने या राह पर लेन के लिए मैं दंड के शिव और कोई उपाय नहीं देखता !” अर्थात पापाचारी का वध करने के लिए जो भी मार्ग चुना जाये वो नैतिक है .पीछे से वार करना -छिपकर वार करना भले ही अनैतिक कहा जाये पर न भूलें इसी मत का सहारा लेकर नक्सलवादी हमारे जवानों पर हमला करते हैं क्योंकि नक्सलवादियों की दृष्टि में हमारी सरकार उनकी शोषक है और इसी सोच का सहारा लेकर पाकिस्तान से प्रेरित आतंकवादी मानव-बम बनकर ”जिहाद” के नाम पर खुद को उड़ा डालते .उनके लिए मासूमों का क़त्ल होना अनैतिक नहीं क्योंकि वे अपनी सोच में इसी मार्ग को नैतिक मानते हैं .भले ही सामान्य परिस्थिति में ये सब अनैतिक कहा जाये पर जेहादियों -नक्सलवादियों के लोकाचार में ये नैतिक की श्रेणी में आता है .उनके नैतिक होने के मायने यही है .
लोकाचार व् नीतियां किताबों या नीति-शास्त्रों के अनुसार नहीं चलती .ये रोज़ की समस्याओं व् परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित होते रहते हैं .नीति-शास्त्रों के आधार पर व्यक्ति खुद को नैतिक या अनैतिक के साँचें में नहीं ढाल सकता .कहा गया है -”बुभुक्षित:किं न करोति पापं !”-भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता पर भूखे आदमी को आप अनैतिक नहीं कह सकते .एक भूखे व्यक्ति का रोटी चुराना अनैतिक नहीं कहा जा सकता .गहराई में जाएँ तो आर्थिक संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माने वाला धनी वर्ग अनैतिक कह लाएगा जिसके कारण एक भूखा आदमी रोटी चुराने को मज़बूर होता है .बुदेलखंड में गरीबी के कारण बेटियां तक बेचीं जा रही हैं .उनके लिए ये अनैतिक नहीं है .एक सैनिक जब गोलियां बरसाकर अपनी सीमा में घुसे दुश्मन राष्ट्र के सैनिक का सीना छलनी कर देता है तब मानवतावादी एक मानव की हत्या पर शोर नहीं मचाते बल्कि सैनिक को सम्मानित किया जाता है क्योंकि सैनिक का नैतिक-धर्म है देश की सीमाओं की रक्षा करना .झूठ बोलना महापाप कहलाता है पर किसी की जान बचाने के लिए झूठ बोलने वाले को पापी नहीं फरिश्ता कहा जाता है .मूल में जाएँ तो हम सब नैतिकता को निभाने का सौ प्रतिशत प्रयास करते हैं पर यदि किसी चालाक व्यक्ति के साथ चालाकी कर अपना हित कर लेते हैं तो क्या हम अनैतिक हो गए ? नहीं क्योंकि कहा गया है -”शठे शाठयम समाचरेत ”.”निसहाय ही हममे से कोई भी अनैतिक होकर नहीं रह सकता है .सम्भव है हमारे कार्यों पर अन्य कोई ऊँगली उठा दे पर हम जब तक स्वयं को आश्वस्त नहीं कर लेते है कि ”ये कार्य ऐसे ही करना नैतिक रूप से सही होगा !” तब तक हम कुछ नहीं करते .फिल्मों व् मॉडलिंग में नग्नता की सीमा पार करने वाली अभिनेत्रियों व् मॉडल्स को इस अश्लीलता में कुछ भी अनैतिक नहीं लगता .
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि ”नैतिक” शब्द हमेशा से जीवित है और हर व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुसार नैतिक रहने का भगीरथ प्रयत्न करता है …हाँ !इसके मायने व्यक्ति-विशेष व् परिस्थिति-विशेष के अनुसार बदलते रहते हैं !
शोध -ग्रन्थ :
१ -राजपाल हिंदी -शंब्दकोश -४५५ पृष्ठ
२ -वाल्मीकि रामायण -६७६ पृष्ठ [किष्किन्धा -काण्ड ]
३ -वाल्मीकि रामायण -६८८ पृष्ठ [किष्किन्धा -काण्ड ]
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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