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ऑनर किलिंग रुके कैसे ?-कहानी

! अब लिखो बिना डरे !
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रणवीर  का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुँच  गया और कॉलेज की कैंटीन में उसने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए टेबिल की दूसरी तरफ  सामने की कुर्सी पर बैठे सूरज के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया .सूरज भी तिलमिलाता हुआ अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और टेबिल के ऊपर से झुककर रणवीर की कमीज़ का कॉलर पकड़ लिया .आसपास बैठे दोस्तों ने दोनों को पकड़कर अलग कराया .रणवीर सुलगता हुआ बोला ” ये ऑनर  किलिंग नहीं है ..ये सजा है बाप-भाई को धोखा देने की ..उन्हें समाज में बेइज्ज़त करने की , मर्यादाओं को ठेंगा दिखाने की और फिर तू बर्दाश्त कर लेगा अगर तेरी बहन …!!!” रणवीर  अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही सूरज चीखता हुआ बोला -” अपनी गन्दी जुबान बंद कर ..वरना !” सूरज की ललकार पर रणवीर तपते लोहे की तरह उसे तपाता हुआ बोला – ” वरना..वरना क्या ?निकल गया सारा आधुनिकतावाद ..मानवतावाद ..भाई जिस पर पड़ती है वो ही जानता है .एक बाप ने बेटी पर विश्वास कर उसे पढ़ने भेजा और वो पढाई छोड़कर प्रेम -प्यार  के चक्कर में पड़ कर किसी के साथ भाग गयी .बाप ने जहर खा लिया .यदि बाप ऐसे में मर जाये तो क्या ऐसी विश्वासघातिनी बेटी पर बाप की हत्या का मुकदमा नहीं चलना चाहिए ? मैं भी किसी के क़त्ल का समर्थन नहीं करता पर जिस बाप की बेटी बाप को धोखा देकर किसी के साथ भाग जाये या जिस भाई की बहन ऐसा ज़लील काम कर जाये उसे ये मानवतावाद की बातें पल्ले नहीं पड़ती .वो या तो फांसी लगाकर खुद मर जाता है या बेटी-बहन और उसके प्रेमी को फांसी चढ़ा देता है .कारण वही एक  है-हर बाप और भाई अपने घर की लड़की पर विश्वास करते है कि वो ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे इस समाज के सामने उन्हें शर्मिंदा होना पड़े पर जब वो विश्वासघात कर… घर की इज्जत नीलाम कर ..किसी अजनबी पर विश्वास कर भाग जाती है ..सब मर्यादाएं तोड़कर.. तब केवल बाप-भाई को दोष देना कहाँ तक उचित है ऐसे कत्लों में ..क्या लड़की का यही कर्तव्य है ?..समाज की जो भी निर्धारित  मान्यताएं हैं वो किसी एक बाप-भाई ने तो बनाई नहीं ..सदियों से चली आ रही है ..उनसे कैसे एकदम नाता तोड़ दें वे बाप-भाई  ?” सूरज थोडा ठंडा होता हुआ बोला -” मैं कब मर्यादाओं के उल्लंघन की बात कर रहा हूँ पर बाप-भाई को ये तो देखना चाहिए कि यदि लड़की द्वारा चुना गया जीवन -साथी योग्य है तब क्यूँ समाज की फ़िज़ूल बातों  पर खून गर्म कर दोनों को मौत के घाट उतारने पर उतारू हो जाते हैं ? तुम मानों या न मानों यदि संवाद का माध्यम खुला रहे बेटी व् बाप-भाई के बीच में तो घर से भागने वाले प्रेमी-युगलों की संख्या शून्य रह जायेगी और  एक बात अन्य भी  गौर करने योग्य है कि  पंचायतों के फरमान पर खुले-आम फांसी पर लटकाये गए प्रेमी-युगलों को देख कर  भी घर से भागने वाले प्रेमी-युगलों की कमी नहीं है बल्कि दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है .इससे तो यही साबित होता है कि -भय से बढ़ती प्रीत ” सूरज की इस बात पर रणवीर व्यंग्यात्मक स्वर में बोला -” ..”प्रेमी-युगल”  …माय फुट..माँ-बाप ने भेजा पढ़ने को और ये रचाने लगे प्रेम-लीला .जो किसी और की लड़की को ले भागा यदि उसकी बहन किसी गैर लड़के से मुस्कुराकर बात भी कर ले तो उस लड़के को सबक सिखाकर ही घर लौटता  है उस बहन का भाई  और फिर सगोत्रीय विवाह ..कैसे स्वीकार कर लिया जायेगा ? प्रेम के नाम पर कल को यदि भाई-बहन के सम्बन्धों की मर्यादा  को कोई तार-तार करने लगे तो क्या हम  मानवतावाद …मानव के अधिकार के नाम पर स्वीकार कर लेंगें  ?नहीं ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा !!!” सूरज सहमत होता हुआ बोला -”तुम्हारी बात ठीक है पर मर्यादित आचरण की नींव घर-परिवार  से ही पड़ेगी .जब परिवार में लड़कों को तो छूट दे दी जायेगी कि जाओ कुछ  भी करो और लड़कियों के ऊपर सख्ती रखी जायेगी तो लड़कियों की सोच यही तक सीमित रह जायेगी कि उनका सशक्तिकरण का रूप केवल उनके द्वारा स्वयं चयनित वर है ..शादी-विवाह ..इससे आगे वे अपने जीवन का उद्देशय ही नहीं जान पाती तब तक ऐसी घटनाएं घटती  ही रहेंगी …इन्हें नहीं रोका जा सकता है .मर्यादा -पालन का सारा बोझ लड़की के कंधें पर रख देना भी उसके विद्रोह का एक कारण है .परिवार की इज्जत केवल लड़की का आचरण ही नहीं लड़के का चरित्र भी है .जब तक परिवारों में मर्यादा -पालन का पाठ दोनों को ही समान रूप से नहीं सिखाया जायेगा तब तक लड़कियों को इज्जत के नाम पर मौत के घाट उतारने से कुछ नहीं होने वाला !” रणवीर गम्भीरता के साथ बोला -” हाँ..हाँ बिलकुल लड़कियों को भी अपनी बात परिवार में बिना झिझक  रखने का पूरा अधिकार होना चाहिए .यदि वे सही हैं तो उनका समर्थन किया जाना चाहिए पर इसके लिए बहुत बड़े सामाजिक-परिवर्तन की आवश्यकता  है …पितृ-सत्तात्मक समाज में तो ये असम्भव सा जान पड़ता है पर एक बात पर मुझे  अचरज  होता है कि बाप-भाई को दुश्मन मानकर घर से भागने वाली लड़की क्या कभी ये नहीं सोचती कि जिसके साथ तू भाग रही है यदि इसने  तुझे धोखा दे दिया तो तू कहाँ जायेगी ..वापस उन्ही दुश्मन बाप-भाई के पास !!!” सूरज रणवीर के सुर में सुर मिलाता हुआ बोला -” बिलकुल ठीक …बल्कि अपनी पसंद से विवाह को नारी-सशक्तिकरण का नाम देती हैं जबकि सशक्त तो तब भी पुरुष ही हुआ ना कि लो अपनी मर्जी से जिसे चाहा ले भागा…निभेगी तो निभाऊंगा वरना पल्ला  झाड़ लूँगा ..क्या कहते हो ? रणवीर की नज़र तभी दीवार पर लगी घडी पर गयी और वो हड़बड़ाता हुआ बोला- ”अरे  इतना  टाइम  हो गया ..भाई सूरज इस बहस का निष्कर्ष बस यही निकलता है कि बाप-भाइयों को भी बेटी व् बहनों के दिल में ये विश्वास पैदा करना होगा कि हम तुम्हारे सही फैसले पर तुम्हारे साथ हैं और तुम्हे भी अपना पक्ष परिवार में रखने का पूरा हक़ है ..तभी कोई हल निकलेगा इस क़त्ल -ए-आम का ..ये भी सच है कि लड़कियों को भी ऐसा कदम उठाने  से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए क्योंकि कोई भी माँ-बाप अपने बच्चे का क़त्ल यूँ ही नहीं कर डालता .लड़कियों को ये भी सोच लेना चाहिए कि कहीं अपने सशक्तिकरण की आड़ में अपने शोषण का हाथियार ही हम पुरुषों के हाथ में न दे बैठे ..चल यार अब माफ़ कर दे मुझे.. मैंने गुस्से में आकर तेरे तमाचा जो जड़ दिया था उसके लिए .” सूरज अपना गाल सहलाता हुआ बोला -” लगा तो बहुत जोरदार था पर आगे से ध्यान रखूंगा जब भी इस मुद्दे पर तेरे से बात करूंगा हेलमेट पहन कर किया करूंगा .” सूरज की इस बात पर रणवीर के साथ-साथ वहाँ खड़े और मित्रगण भी ठहाका लगाकर हंस पड़े !

PUBLISHED IN JANVANI [RAVIVANI] -27APRIL2014

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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