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तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !

! अब लिखो बिना डरे !
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तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम ,

मालिक सदा ही रखना बन्दों पे तू करम ,

नेकी के रास्तों पर बढ़ते रहे कदम ,

नफरत मिटा के दिल से भर देना तू रहम !

तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !

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सबसे करो मोहब्बत मालिक ने हैं सिखाया ,

एक जैसा हम सभी को मालिक ने है बनाया ,

ना कोई ऊँचा-नीचा ना कोई हिन्दू-मुस्लिम ,

एक ही लहू खुदा ने जिस्मों में है बहाया ,

भूलें न उस खुदा को आओ लें ये कसम !

तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम

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मज़हब का नाम लेकर ना हम किसी को मारें ,

लब पर दुआ अमन की हर पल रहे हमारे ,

दिल न कभी दुखाएं मजबूर आदमी का ,

नज़रे उठा के देखो करता है ‘वो’ इशारे ,

ज़ख्मों पे हम किसी के आओ लगाएं मरहम  !

तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !

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करनी हमें हिफाज़त महबूब इस वतन की ,

होली जला दें आओ फिरकापरस्ती की ,

हो ईद या दीवाली मिलकर सभी मनाएं ,

रब की यही है मर्ज़ी फूलों से मुस्कुराएं ,

इंसानियत निभाएं जब तक हो दम में दम !

तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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