! अब लिखो बिना डरे !
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राष्ट्रपति भवन में अपने पति ले.विक्रमजीत सिंह के मरणोपरांत शौर्य -चक्र लेने पहुंची उनकी पत्नी की आँखें नम हो गयी |
अमर सुहागन !
हे! शहीद की प्राणप्रिया
तू ऐसे शोक क्यूँ करती है?
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दुल्हन मांग को भरती है.
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श्रृंगार नहीं तू कर सकती;
नहीं मेहदी हाथ में रच सकती;
चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए;
कजरा-गजरा भी रूठ गए;
ऐसे भावों को मन में भर
क्यों हरदम आँहे भरती है !
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दीपक में ज्योति जलती है.
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सब सुहाग की रक्षा हित
जब करवा-चोथ -व्रत करती हैं
ये देख के तेरी आँखों से
आंसू की धारा बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा;
हर दिल कीधड़कन कहती है..
जिसका प्रिय हुआ शहीद यहाँ
वो ”अमर सुहागन” रहती है.
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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