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”.. चौखट न पार करना ”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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बस इतना याद रखना चौखट न पार करना ,
मेरा लिहाज़ रखना चौखट न पार करना !
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आँगन,दीवार,छत हैं कायनात तेरी ,
इसमें जीना-मरना चौखट न पार करना !
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खिदमत करे शौहर की बेगम का है मुकद्दर ,
सब ज़ुल्म मेरे सहना चौखट न पार करना !
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नाज़ुक कली सी हो तुम बेबस हो तुम बेचारी ,
मेरी पनाह में रहना चौखट न पार करना !
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ढक -छिप के जो है रहती औरत वही है ‘नूतन’
गैरों से पर्दा करना चौखट न पार करना !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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