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साबित करो कि मैं ही कातिल हूँ शहर का !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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करना न खिलाफत मेरी मालिक हूँ शहर का ,
खूंखार मैं सरकार हूँ हाकिम हूँ शहर का !
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गर्दन पे रख तलवार बोला था मैं ये हंसकर ,
साबित करो कि मैं ही कातिल हूँ शहर का !
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लब खोलने से पहले अंज़ाम सोच लो ,
सबसे बड़ा जल्लाद मैं ज़ालिम हूँ शहर का !
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अदालतों को चाहियें सुबूत और गवाह ,
सब को मिटाने वाला मैं शातिर हूँ शहर का !
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इंसाफ की उम्मीद रखना नहीं ‘नूतन’ ,
हाँ मौत का सौदागर मैं ही हूँ शहर का !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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