होली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
बरसाने वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली ,
ब्रज का छोरा छिप-छिप कर खेले है आँख-मिचौली !
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घर-घर में ढूंढें राधा कान्हां है छिपा कहाँ पर ,
फिर जमुना तट पर खोजा पाया ना उसे वहाँ पर ,
वो जगत -खिलावन वाला करता है खूब ठिठौली !
बरसाने वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली !
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कान्हां के मित्र-सखागण हँसते हैं राधा-दल पर ,
कुढ़ती-चिढ़ती रह जाती हाथों को मल-मल-मल कर ,
तभी पड़ी कदम्ब पर दृष्टि और देखि छवि सलोनी !
बरसाने वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली !
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कान्हां के मुख-दर्शन से झुलसी कलियाँ मुस्काई ,
राधा के मनमोहन ने फिर मुरली मधुर बजाई ,
पिचकारी लेकर राधा कान्हां को रंगने दौड़ी !
बरसाने वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली !
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कान्हां को रंग दिया हाय मल -मल कर लाल गुलाल ,
फिर कान्हां ने रंग डाले राधा के गोरे गाल ,
अजी होरी है जी होरी ; होरी में कैसी चोरी !
बरसाने वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली !
जागरण जंक्शन ब्लॉग्स में १७ मार्च २०१४ को प्रकाशित
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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