! अब लिखो बिना डरे !
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है इज़ाजत तुम्हें पंख लगा उड़ने की ,
मगर कोशिश न करना मुझसे ऊँचा उड़ने !
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है इज़ाजत तुम्हें जज़्बात बयां करने की ,
मगर हिम्मत न करना राज़ बयां करने की !
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है इज़ाजत तुम्हें सजने और संवारने की ,
मगर चाहत न रखना बेपर्दा फिरने की !
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है इज़ाजत तुम्हें मुझसे बात करने की ,
मगर हिमाकत न कभी करना बहस करने की !
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है इज़ाजत ‘नूतन’ शरीक-ए-हयात बनने की ,
मगर ख्वाहिश न करना मेरा ख़ुदा बनने की !!
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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