! अब लिखो बिना डरे !
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जब से जागा हूँ आज तक सोया ही नहीं !
कैसे कोई ख्वाब देखूं आज तक सोया ही नहीं !
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ग़मों ने साथ निभाया नहीं छोड़ा तन्हा ,
है ऐसा कौन इंसां आज तक रोया ही नहीं !
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उसे मालूम क्या दर्द किसे कहते हैं ,
जिसने अज़ीज़ कोई आज तक खोया ही नहीं !
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दागी कहलाने लगे आज कल रसूख़ वाले ,
दाग इस चक्कर में आज तक धोया ही नहीं !
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बनाकर मुंह न यूँ बैठो बबूल देख ‘नूतन’ ,
लगेगा आम कैसे आज तक बोया ही नहीं !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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