! अब लिखो बिना डरे !
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मुस्कुराने के लिए कोई वजह तो चाहिए ,
आह भरने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
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पूछते हैं सब यही खामोश क्यूँ हो तुम ?
लब हिलाने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
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बैठे-बिठाये उसने मुझसे बैर कर लिया ,
षड्यंत्र रचने के लिय कोई वजह तो चाहिए !
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झोपडी को कर रही ज़लील कोठियां ,
दिल जलाने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
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बेवजह ‘नूतन’ जहां में कुछ नहीं होता ,
ज़िंदा रहने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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