! अब लिखो बिना डरे !
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भरी दुपहरी जेठ की या सावन की बौछार ,
रोज हाथ में ‘रोज़’ लिए करते इंतजार !
सोते-जागते सुबह-शाम इसकी रहती है खोज ,
प्रॉमिस करते बड़े बड़े ,करते इसको प्रपोज़ !
गले लगाने को इसे हम सब हैं तैयार ,
पहने फूलों के हार भी जूतों की खाते मार !
अमर प्रेम इससे हमें करते हैं स्वीकार ,
चंचल चित्त की प्रेमिका प्रेमी बदले हर बार !
मेहरबान जिस प्रेमी पर उसकी बनती सरकार ,
नेताओं की प्रेमिका ”सत्ता” की जय जयकार !!!
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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