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कविता ‘कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी ‘[contest ]

! अब लिखो बिना डरे !
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रघुकुल के उज्ज्वल भाल पर कालिख न लगने पायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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मेरे ह्रदय में हर घड़ी मेरे प्रभु का वास है ,
मेरे प्रभु को भी मेरी शुद्धि पर विश्वास है ,
बस ये तसल्ली उर में ले वनवास सीता जायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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अपवाद जिस दिन से उठा मेरे प्रभु गम्भीर थे ,
सीता की निंदा हो रही ये सोचकर अधीर थे ,
अपने प्रिय के शोक का कारण नहीं कहलायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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विष पी रहे प्रभु मेरे नीलकंठ बन ,
इसीलिए मैं कर रही वन को हूँ गमन ,
राम की अर्द्धांगिनी अपना वचन निभाएगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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गर्भ में प्रभु-अंश है जन्म देगी उसको जब ,
रघुकुल का वो गौरव बने ऐसी शिक्षा देगी सब ,
नारी को सम्मान दो सीता उसे सिखाएगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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