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शहीद के परिवार का सन्देश -एक लघु कथा [कांटेस्ट]

! अब लिखो बिना डरे !
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‘बाबू जी …..बाबू जी …’ श्रीपाल बाबू के पड़ोस में रहने वाला  युवक विक्रम उनके घर के द्वार पर खड़ा होकर उन्हें आवाज लगा रहा था .कल ही तो होकर चुकी है उनके शहीद हुए बेटे विजय की तेरहवीं  ..एकलौता पुत्र था श्रीपाल बाबू का विजय .पत्नी के दो वर्ष पूर्व हुए निधन के बाद यह बहुत बड़ा हादसा था श्रीपाल बाबू के जीवन में . विजय अपने  पीछे  श्रीपाल बाबू के अलावा पत्नी शुचि व् डेढ़ साल के बेटे विभु को छोड़ गया था .विक्रम की आवाज़ पर श्रीपाल बाबू आँगन में आये तो विक्रम पास आकर बोला -‘बाबू जी …..थानाध्यक्ष बाबू मेरी बैठक में बैठे हैं आप से मिलना चाहते हैं . ”बुला ला बेटा यहीं ” श्रीपाल बाबू उदासीन भाव से बोले . थोड़ी देर में थानाध्यक्ष को विक्रम श्रीपाल बाबू की बैठक में ले आया .थानाध्यक्ष  ने औपचारिक बातचीत के बाद अपने आने का मंतव्य व्यक्त किया . वे बोले -”बाबूजी !मुख्यमंत्री कार्यालय से ऊपर फोन आया था .मुख्यमंत्री जी यहाँ आकर अपनी शोक-संवेदना व्यक्त करना चाहते हैं .श्रीपाल बाबू के होठों पर व्यंग्यपूर्ण मुस्कान आई और दिल में कड़वाहट भर आई .उन्होनों अपनी बहू शुचि को आवाज़ लगाई .शुचि के वहाँ आते ही श्रीपाल बाबू ने उससे पूछा -”शुचि विजय के शहीद हो जाने से क्या तुम दुखी  हो ?” शुचि दृढ़ता के साथ बोली -”..नहीं बाबू जी . यदि मैं ही दुखी रहूंगी तो भविष्य में मेरा बेटा कैसे सेना में भर्ती होने के काबिल बन सकेगा ? एक शहीद की पत्नी व् एक भावी सैनिक की माता होने के गर्व से मैं उत्साहित हूँ !” शुचि का जवाब सुनकर श्रीपाल बाबू थानाध्यक्ष से बोले -” श्रीमान जी आप अपने ऑफिसर्स को यह सूचित कर दें कि वे मुख्यमंत्री   तक हमारा ये सन्देश पहुंचा दें -‘हमारा बेटा अपने कर्तव्य का निर्वाह करता हुआ शहीद हुआ है ..अब आप अपने पद के अनुरूप कर्तव्य का निर्वाह करें ..यही शहीदों को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी .”यह सुनकर थानाध्यक्ष शहीद के परिवार के प्रति नतमस्तक हो गए और उनसे विदा ले अपने कर्तव्य के निर्वाह हेतु वहाँ से चल दिए !

डॉ.शिखा कौशिक ‘नूतन ‘

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