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लघु कथा-आखिर एक लड़की होकर भी [contest ]

! अब लिखो बिना डरे !
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सीमा ने कविता को छेड़ते हुए कहा -”तुझे पता भी है तेरा बड़ा भाई सन्नी आजकल रूपा के घर के आस-पास घूमता रहता है .दिया बता रही थी कि उसने रूपा के पास सन्नी के कई प्रेम-पत्र भी देखे हैं .” कविता सीमा की बात पर कुछ आक्रोशित होते हुए बोली -”नहीं ऐसा नहीं हो सकता …मेरा भाई तो बहुत भोला है ..जरूर उस चुड़ैल रूपा ने ही कुछ कर के मेरे भाई को फँसाया होगा ….चल मेरे साथ उस रूपा के घर अभी अक्ल ठिकाने लगा कर आती हूँ बेवजह मेरे भाई को बदनाम कर रही है !!!” ये कहते-कहते कविता तेजी से चल दी तभी दिया का भाई टोनी वहाँ आ पहुंचा और कविता से बोला -” दीदी ! नमस्ते ….मुझे रूपा दीदी ने भेजा है . उन्होंने आपके लिए एक मैसेज भेजा है .उन्होंने कहा है कि आप अपने भाई सन्नी को समझाएं अन्यथा रूपा दीदी को कोई कड़ा कदम उठाना पड़ेगा ..आपके भाई की वजह से रूपा दीदी ने कॉलेज व् ट्यूशन सब जगह जाना छोड़ दिया है .उनका मानना है कि आप उनकी हमउम्र हैं ..आप उनकी परेशानी को समझेंगी ..वे नहीं चाहती कि उनके पिता जी को इस सब का पता चले वरना मामला पुलिस तक जा सकता है !” टोनी के ये कहकर वहाँ से जाते ही कविता अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठी .उसके मन में आया -”आखिर एक लड़की होकर भी मैंने अपने भाई की आवारगी के लिए रूपा को दोषी ठहरा दिया …..अब मुझे कुछ करना होगा …मुझे माँ व् पापा को इस सबके के बारे में बताना ही होगा ….आज पापा से बहुत झड़ेगा भाई !” ये सोचते सोचते कविता ने अपने कदम रूपा के घर की ओर बढ़ाने की जगह अपने ही घर की ओर बढ़ा दिए और सीमा ने जिस पटाखे को आग लगाई थी वो फुस्स निकल गया .

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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