! अब लिखो बिना डरे !
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मेरी कविता को नहीं बंधन कोई स्वीकार ,
न छंद के नुपूर न रीति न अलंकार !
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दोहे की चुनरी ओढ़ कहा छोड़ ढ़िठाई ,
चल मंद मंद नायिका सी बन के चौपाई ,
अंगड़ाई ले वो बोली मेरा उन्मुक्तता आधार !
मेरी कविता को नहीं बंधन कोई स्वीकार !
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अनुप्रास की मेहँदी रचा नयनों में यमक काजल ,
कंगन पहन श्लेष के हे मूढ़मति ! पागल ,
बोली मुझे तो रुचता भावों का पुष्प-हार !
मेरी कविता को नहीं बंधन कोई स्वीकार!
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कविता ने कहा मेरा अभिव्यक्ति ही निखार ,
उर में उठे हर भाव को देते रहो आकर ,
नित नवल भावमयी रचना मेरा श्रृंगार !
मेरी कविता को नहीं बंधन कोई स्वीकार !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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