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रविवार का दिन था .पुष्कर दफ्तर के काम की कुछ फाइले बैड पर फैलाकर अपने काम में व्यस्त था तभी उसका पांच वर्षीय बेटा मिटठू बाहर से रोता हुआ आया और बैड पर चढ़कर उससे लिपट गया . पुष्कर ने अपना काम छोड़कर स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा -” अरे क्या हुआ मिटठू बाबू जी …….आप तो खेलने गए थे बाहर !” मिटठू अपनी नन्ही नन्ही उँगलियों से पुष्कर के दोनों कान पकड़ता हुआ बोला – ” पप्पा क्या मैं मनहूस हूँ ?” मनहूस शब्द इतने छोटे बच्चे के मुंह से सुनकर पुष्कर आवाक रह गया . पुष्कर उसकी उँगलियों से कान छुड़ाता हुआ बोला -” क्या कर रहे हो ? किसी ने कुछ कहा तुमसे ? ” मिटठू सुबकता हुआ बोला -” हाँ ! वो रानी हैं ना … ..मोटी कहीं की …उसने कहा कि ”तुम हमारे साथ नहीं खेल सकते मेरी मम्मी कहती है कि तुम मनहूस हो ..तुम्हे जन्म देते ही तुम्हारी मम्मी मर गयी .” ये बताता बताता मिटठू दहाड़े मारकर रोने लगा .पुष्कर उसे चुप कराता हुआ बोला -” नहीं बेटा तू मनहूस नहीं है .मनहूस तो वे हिन्दू-मुस्लिम झगडे थे जिसके कारण शहर में कर्फ्यू लगा और मैं तुम्हारी मम्मी को समय से हॉस्पिटल न ले जा पाया .” पुष्कर की बात पर मिटठू ने तुरंत प्रश्न पूछ डाला -” पप्पा ये दंगे क्या होते हैं ….पप्पा मैं हिन्दू हूँ या मुस्लिम ?” पुष्कर उसके इस प्रश्न पर उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाता हुआ बोला -” ये जो तू लड़कर आता है न अपने दोस्तों से ये ही दंगे होते हैं और तू न हिन्दू है और न ही मुस्लिम ..तू केवल इंसान है …कुछ समझा .” पुष्कर मिटठू को ये समझा ही रहा था कि गली के कई बच्चे शोर मचाते हुए वहीं आ पहुंचे .उनमें से एक गोल-मटोल प्यारी सी बच्ची आगे आयी और अपने कान पकड़ते हुए बोली -” सॉरी मिटठू ..चलो बाहर चलकर खेलते हैं .” उसकी सॉरी सुनते ही मिटठू ने पुष्कर की ओर देखा और उस बच्ची को धमकाता हुआ बोला -” सॉरी की बच्ची रानी ..तुझे अभी सबक सिखाता हूँ .” ये कहकर मिटठू बैड से कूदा और सारे बच्चे धूम मचाते हुए बाहर की ओर भाग गए .पुष्कर के दिल में आया -” काश हमारे दिल भी बच्चों की तरह साफ़ होते तो न कभी मज़हबी दंगे होते और न मिटठू की तरह किसी बच्चे को अपनी माँ की ममता से महरूम होना पड़ता !”
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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