! अब लिखो बिना डरे !
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अहसान नहीं मानती हैं अहसानफरामोश !
बेगमें तो होती हैं अहसानफरामोश !
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करती नहीं शौहर की थोड़ी सी भी तारीफ ,
सिल जाते लब हैं इनके हो जाती हैं खामोश !
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कहती हैं दो आज़ादी गुलाम नहीं हम ,
घर कौन संभालेगा इसका नहीं है होश !
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शौहर करे हिफाज़त वो पालता इन्हें ,
इज्जत से रहे बेगम हो जाता है सरफ़रोश !
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ज़ालिम हमारा शौहर बेकार है ऐलान ,
‘नूतन’ ज़माना जानता हम हैं सफेदपोश !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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