! अब लिखो बिना डरे !
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शहादत की यहाँ कीमत लगाते हैं कई बुज़दिल ,
ताला नोट का मुंह पर लगाते हैं कई बुज़दिल !
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सियासत के लिए इमदाद देते हैं करोड़ों की ,
यहाँ आंसू मगरमच्छी बहाते हैं कई बुज़दिल!
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ये एक दिन में भुला देते शहीदों की शहादत को ,
दिखावे को बड़े मेले लगाते हैं कई बुज़दिल !
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शहादत को बना मुद्दा सियासत की सिके रोटी ,
शहीदों के कफ़न तक बेच खाते हैं कई बुज़दिल !
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बुझा दीपक है जिस घर का वतन के वास्ते ‘नूतन’
नहीं सिर उसकी चौखट पर झुकाते हैं कई बुज़दिल !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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