! अब लिखो बिना डरे !
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बेगम तो फ़िक्र करती है शौहर की सुबह-शाम ,
बेफिक्र होकर बीतती शौहर की सुबह -शाम !
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बेगम के सिर में दर्द है बेहाल हो रही ,
नुक्कड़ पे ताश खेलते शौहर जी सुबह-शाम !
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दें दूंगा मैं तलाक जो आँख दिखाई ,
इन धमकियों में दहलती बेगम की सुबह-शाम !
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बेगम क्यूँ फ़िक्र करती हो बच्चा नहीं हूँ मैं ,
छोड़ो ये पहरेदारी शौहर की सुबह-शाम !
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बेगम गयी है ‘नूतन’ जिस दिन से मायके ,
कटती है इत्मीनान से शौहर की सुबह-शाम !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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