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मेरी शिकस्त को मौत मान बैठा है !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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दिया जीने का नया मकसद, है अहसान किया ,
मेरे मक्कार मुख़ालिफ़ ने है अहसान किया !
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मेरे आंसू पे ज़रा हंसकर मुख़ालिफ़ ने मेरे ,
गिर के उठने का है तोहफा मुझे ईनाम दिया !
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मेरी शिकस्त को मौत मान बैठा है ,
मुख़ालिफ़ है रहमदिल मैय्यत का इंतज़ाम किया !
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हादसे झेल जाऊं मुख़ालिफ़ ने दी हिम्मत मुझको ,
मुझे उकसाकर ज़र्रे से आसमान किया !
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मैं तो मर जाता अगर मुख़ालिफ़ न होता मेरा ,
मैंने हर जीत पर ‘नूतन’ उसे सलाम किया !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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