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अपने शहर में हम मगर गुमनाम रह गए !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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शहर शहर मशहूर हुए ;नहीं गुमनाम रह गए ,
अपने शहर में हम मगर गुमनाम रह गए !
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गैरों ने दी इज्जत बहुत सिर पर बिठा लिया ,
अपनों की नज़र में मगर बदनाम रह गए !
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हमने बचाया ऐब से अपना सदा दामन ,
हमको मगर ज़ालिम कई बेईमान कह गए !
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हादसे सब झेलकर दिल बन गया फौलाद ,
आँखों के रास्ते मगर अरमान बह गए !
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हम दर्द अपना कह न पाये अपनी जुबां से ,
‘नूतन’ यूँ ही चुप रह के सब इल्ज़ाम सह गए !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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